गायन के कुछ महत्वपूर्ण अंग

 Today I will tell something new 

Sound

 Any type of sound which is heard by the ears is called sound. Everything we hear is sound. Like the sound of a fan, the sound of a bird, a car, a horn, etc. are all sound but we cannot include every sound in music. Some sounds are Karnakatu, while some sounds are Karnapriya music. Sound originates from vibration. When we strike an object, vibration occurs.And it is through this vibration that sound is produced. Like in any system instrument, the sound is produced by the vibration of the wires. In the same way, the sound of solid is made by the vibration of leather in leather instruments like - tabla, dholak. In flute clarinet etc. sound is produced by the vibration of air. Similarly, the sound produced by the vibrations of the vocal nerves within the human throat. The melodious sound of regular movement numbers in music is called nad.

Shruti 

'Shravanendriyagrahavaavadh SoundRepa Shrutibarveet.' (Pranav Bharti-Omkaranath Thakur, p. 37) The sound is called Shruti, due to being receptive ie by the ears. We can understand Shruti directly in simple terms, which can be heard by ears, understood and can be clearly experienced in the separation of height, which is pleasant in hearing as well as which can be proved by the tabular-quadrant. , Only such rivers have been called Shruti.Also, it is necessary to be musical. Scholars have determined the number of Shrutis as 22, their names are as follows.










१. यात्रा

२. कुमुद्दती 

३. मन्दा 

४. छन्दोवती 

५. मायावती 

६. रंजनी 

७. रक्तिका 

८. रौद्री

९. क्रोधा 

१०. वजरीय 

११. प्रसारिणी 

१२. प्रीति 

१३. मार्जनी 

१४. क्षिति

१५. रक्षा

१६, संदीपनी

१७. आलापिनी 

१८. मदन्ती 

१९. रोहिणी

२०. रम्या

२१. उग्रा 

२२. क्षोभिणी

All the text cars from Bharata Muni to the present tense have divided the twenty two Shrutis equally under seven vowels. Among them, 7 Shruti of material, 3 Shruti of Reddy and 2 Shruti of Gnika are considered as Sa R G M P Dhoni's 43,233,32 Shruti respectively, the ancient, middle carpet and current carpet are all considered authorship.



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हिन्दी के लिये

ध्वनि

किसी भी प्रकार की आवाज जो कानों को सुनाई पड़े ध्वनि कहलाती है। जो कुछ भी हम सुनते हैं वह ध्वनि है। जैसे पंखे की आवाज, चिड़िया, गाड़ी, हार्न आदि की आवाज सभी ध्वनि है परन्तु हर ध्वनि को हम संगीत में सम्मिलित नहीं कर सकते। कुछ ध्वनियाँ कर्णकटु होती है तो कुछ कर्णप्रिय कर्णप्रिय ध्वनि ही संगीत है। ध्वनि की उत्पत्ति कम्पन से होती है। जब हम किसी वस्तु पर आघात करते हैं तो कम्पन उत्पन्न होता है। और इसी कम्पन से ध्वनि उत्पत्र होती है। जैसे किसी भी तंत्र वाद्य में तारों के कंपन से ही ध्वनि उत्पन्न होती है। वैसे ही चमड़े वाले वाद्यों जैसे- तबला, ढोलक में चमड़े के कंपन से ध्वनि ठोस होती है। बाँसुरी शहनाई आदि में हवा के कंपन से ध्वनि उत्पन्न होती है। इसी प्रकार मनुष्य के कंठ के भीतर जो स्वर तंत्रियाँ हैं उसके कंपन से ध्वनि उत्पन्न होती है। संगीत में नियमित आंदोलन संख्या वाली मधुर ध्वनि को नाद कहते हैं।

श्रुति

'श्रवणेन्द्रियग्राह्यवाद् ध्वनिरेप श्रुतिर्भवेत।'
 (प्रणव भारती-ओंकारनाथ ठाकुर, पृ.सं. ३७) श्रवणेन्द्रिय अर्थात् कानों द्वारा ग्राह्य अर्थात् ग्रहण होने के कारण ध्वनि ही श्रुति कहलाती है। श्रुति को सीधे सरल अर्थों में हम यूँ समझ सकते हैं कि जो कानों से सुने जाएँ, समझे जाएँ और जिनकी ऊँचाई-निचाई के पृथकत्व का स्पष्ट अनुभव किया जा सके,जो सुनने में मधुर हो साथ ही सारणा-चतुष्टयी द्वारा जिनकी सिद्धि की जा सके, ऐसे नादों को ही श्रुति कहा गया है। साथ ही इनका संगीतोपयोगी होना आवश्यक है। विद्वानों ने श्रुतियों की संख्या २२ निर्धारित की हैं इनके ना निम्नलिखित है।

१. यात्रा

२. कुमुद्दती 

३. मन्दा 

४. छन्दोवती 

५. मायावती 

६. रंजनी 

७. रक्तिका 

८. रौद्री

९. क्रोधा 

१०. वजरीय 

११. प्रसारिणी 

१२. प्रीति 

१३. मार्जनी 

१४. क्षिति

१५. रक्षा

१६, संदीपनी

१७. आलापिनी 

१८. मदन्ती 

१९. रोहिणी

२०. रम्या

२१. उग्रा 

२२. क्षोभिणी

भरत मुनि से लेकर वर्तमान काल तक के सभी ग्रन्थ कारों ने बाइस श्रुतियों को सात स्वरों के अन्त्रगत समान रूप से विभाजित किया है। इनमें साम प की ४ श्रुतियाँ, रे ध की ३ श्रुतियाँ तथा ग नि की २ श्रुतियाँ मानी जाती है सा रे ग म प धोनी की क्रमश: ४३२४४३२ श्रुतियाँ प्राचीन, मध्य कालीन तथा वर्तमान कालीन सभी ग्रन्थकार मानते हैं।

Ayan bhattacharya 


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