वादी, संवादी, अनुवादि और विवादि के परिचय


The most important voice of a raga is called a vadi vowel, that is, the tone which is placed higher than the other vowels in the raga and which is used more will be called the vowel of that raga. Therefore, the voice of the voice has been called the king of the raga state. The importance of the vocal voice in the raga is so much that despite the similarity of the vowels in the two ragas, only the change of the plural vowel makes the two ragas completely different from each other.For example, Raga Bhupali and Raga Deshkar. Due to the difference of the vocal sound, the nature of both ragas is different. While all the vowels of both are from one. Bhupali's vocal voice is odorous and the patriot's devout. Hence Bhupali Purvanga is the main raga and Deshkar is Uttaragana Pradhan. The ragas whose vowel tone is in the east part of the octave are called ragas Purvanga Pradhan Ragas and due to the vocal sound in the north part, the raga will be Uttaragana Pradhan.The ragas whose vowel tone is in the east part of the octave are called ragas Purvang Pradhan Raga and due to the Vadi voice in the north part, the raga will be Uttarag Pradhan. For example, raga puriya, marva, sohni are similar in tone, but with the difference of mereistic voice, the three ragas are completely different from each other. Wadi-ga of Raga Puriya, Wadi-re of Raga Marwa vaadi re and of Raga Sohni. Vaadi dhaThis Purvaang Pradhan raga is due to Puriya and Marwa's voice in Purvang and Sohni's is in Uttararang because it is Uttaraang Pradhan Rag. Thus, the vocal sound is the most important tone of the raga.


The second important tone of the raga after the vowel is called the conversational one. Conversational means one who communicates with the plaintiff. The tone which occurs at intervals of P or thirteen Shruti from the Vadi vowel is called the conversational tone. The king of this litigant is said to be the minister because the proper form of the raga creates the main form of the raga. For example, the voice of Raga Marwa is Rishabh, the conversational voice is Dhyavat, so only ध म| ग रे_, ध. नि रे_ सा Marva raga will become clear only by singing so many vocals. In the case of the litigant, it is the rule that both the vowels are not in the same part of the octave. If the vocal tone of a raga is in the Purvanga of the seventh, then the Samvadi will definitely be in the Uttaraga. For example, if the vocal tone of the raga Bhupali is Gandhar, then the communist fanatic.







राग का सबसे महत्त्वपूर्ण स्वर वादी स्वर कहलाता है अर्थात् राग में अन्य स्वरों की अपेक्षा जिस स्वर पर अधिक ठहरा जाय और जिसका अधिक प्रयोग हो वह उस राग का वादी स्वर कहलाएगा। इसलिए वादी स्वर को राग रूपी राज्य का राजा कहा गया है। राग में वादी स्वर का महत्व इतना अधिक है कि दो रागों में स्वरों की समानता होते हुए भी केवल वादी स्वर के परिवर्तन से दोनों राग एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न हो जाते हैं। उदाहरण के लिए राग भूपाली व राग देशकार। वादी स्वर के अंतर से दोनों रागों का स्वरूप अलग हो जाता है। जबकि दोनों के सभी स्वर एक से हैं। भूपाली का वादी स्वर गंधार है व देशकार का धैवत। अतः भूपाली पूर्वांग प्रधान राग है और देशकार उत्तरांग प्रधान। जिन रागों का वादी स्वर सप्तक के पूर्व भाग में होता है उन रागों को पूर्वांग प्रधान राग कहते हैं और उत्तर अंग में वादी स्वर होने से राग उत्तरांग प्रधान होगा। जैसे- राग पूरिया, मारवा, सोहनी इन तीनों में लगने वाले स्वर समान है, परन्तु मात्रवादी स्वर के अन्तर से तीनों राग एक दूसरे से सर्वथा भिन्न हो जाते हैं। राग पूरिया का वादी-ग, राग मारवा का वादी-रे तथा राग सोहनी का वादी स्वर ध है। पूरिया तथा मारवा का वादी स्वर पूर्वांग में होने के कारण ये पूर्वांग प्रधान राग तथा सोहनी का वादी उत्तरांग में होने के कारण ये उत्तरांग प्रधान राग है। इस प्रकार वादी स्वर राग का अति महत्वपूर्ण स्वर होता है।


वादा स्वर के पश्चात् राग का द्वितीय महत्वपूर्ण स्वर संवादी कहलाता है। संवादी अर्थात् जो वादी से संवाद करे। वादी स्वर से पी या तेरह श्रुति के अंतराल पर जो स्वर होता है वह संवादी स्वर कहलाता है। इसी वादी रूपी राजा का मंत्री कहा गया है क्योंकि वादी एवं सम्वादी के उचित तालमेल से ही राग के मुख्य स्वरूप की सृष्टि होती है। उदाहरण राग मारवा का वादी स्वर ऋषभ, संवादी स्वर धैवत है, तो मात्र ध म| ग रे_, ध. नि रे_ सा इतने स्वरों को गाने से ही मारवा राग स्पष्ट हो जायेगा। वादी-सम्वादी के विषय में यह नियम है कि दोनों स्वर, सप्तक के एक ही अंग में नहीं होते। यदि किसी राग का वादी स्वर सप्तक के पूर्वांग में है तो सम्वादी अवश्य उत्तरांग में होगा। जैसे- राग भूपाली का वादी स्वर गंधार है तो सम्वादी धैवत।









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