भारतीय संगीत में गायन-वादन के सौन्दर्य वृद्धि हेतु कभी-कभी स्वरों में कुछ सूक्ष्म स्वरों का प्रयोग किया जाता है। ऐसे प्रयोग से (मुख्य स्वरों पर अन्य स्वरों के स्पर्श से) मुख्य स्वरों की मधुरता बढ़ती है।
जब किसी मुख्य स्वर को गाने के पहले या बाद में किसी अन्य स्वर का स्पर्श किया जाता है तो जिस भी स्वर का स्पर्श करते हैं उसे कण स्वर या स्पर्श स्वर कहते है। कण स्वर (grace notes) दो प्रकार के होते हैं।
१. पूर्वलग्न कण:- वह स्वर जिसका स्पर्श इच्छित स्वर गाने से पहले किया जाता है, उसे पूर्वलग्न का कहा जाता है। कण स्वर लिखते समय मुख्य स्वर के ऊपर बाँयी ओर कण स्वर को लिखते हैं। प. गपरेसा इस प्रकार गाते हैं, तो ग पर रे का कम लगा है।
२. अनुलग्न कण :- वह स्वर जिसका स्पर्श, इच्छित स्वर गाने के बाद किया जाए अनुलग्न का कहलाता है। लिखते समय मुख्य स्वर के दाँयी ओर ऊपर की तरफ कण स्वर लिखते हैं। जैसे राग शंकरा में गिरे सा में प्रथम ग के पहले एवं बाद में का पूर्वलग्न एवं अनुलग्न दोनों कण हैं।
शब्दालाप
राग के स्वरूप की रक्षा करते हुए राग में निहित स्वरों में ही बन्दिश या गीत के बोलों (शब्दों) को लेकर राग का विस्तार करने की प्रक्रिया को शब्दालाप कहते हैं।
बोलतान
द्रुत गति में राग के स्वरों को शब्दों के साथ प्रस्तुत किया जाता है तो उसे बोलतान कहते हैं। अर्थात् बोलतान में स्वर न गाकर गीत के शब्द गाये जाते हैं।
आवर्तन
किसी भी ताल के बोलों को सम से सम तक एक बार बजा कर आने की क्रिया आवर्तन कहलाती है। अर्थात् ताल में एक बार सम से पुनः सम तक आने का समय एक आवर्तन कहलाता है।
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उत्तर भारतीय संगीत में बंदिश का महत्त्व बंदिश भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक आवश्यक अंग …
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