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Vyankatmakhi ke 72 that and katpayadi
Vyankatmakhi ke 72 that and katpayadi
Hindustani classical music
July 15, 2021
Vyankatmakhi ke 72 tha and katpayadi.
व्यंकटमखी के 72 थाट और कटपयादि।
पूर्वाग के प्रथम अर्धमेल के साथ उत्तरांग के सभी छहों अर्धमेलों को बारी-बारी मिलाने पर छह पूर्णमेल तैयार होंगे। इसी प्रकार पूर्वांग के दूसरे अर्धमेल के साथ उत्तरांग के छहों अर्धमेलों को बारी-बारी जोड़ने से नवीन छह मेल बनेंगे, ठीक इसी प्रकार क्रमशः तीसरे, चौथे आदि के प्रत्येक पूर्वांग के साथ उत्तरांग के अर्धमेलों को जोड़ने से (6 x 6 = ) 36 पूर्णमेल तैयार हो जाएँगे। इन सभी मेलों में 'शुद्ध-मध्यम' है, अब यदि 'शुद्ध-मध्यम' के स्थान पर 'तीव्र-मध्यम' कर दिया जाए तो पुनः 36 और नवीन मेल तैयार हो जाएँगे। अतः इस प्रकार कुल (36+36) 72 मेल बनाने की विधि व्यंकटमखी ने दी है।
हिन्दुस्तानी संगीत की दृष्टि से दक्षिणी संगीत में पूर्वाग के प्रथम क्रम में गंधार नहीं है और छठे क्रम में नहीं है। इसी प्रकार उत्तरांग के प्रथम क्रम में निषाद नहीं है और छठे क्रम में चैवत नहीं है। इस शंका का समाधान यह है कि पं० व्यंकटमखी के 12 स्वर हमारे 12 स्वरों के समान नहीं थे। व्यंकटमखी ने थाट को सम्पूर्ण करने हेतु कुछ स्वरों के काल्पनिक नाम दिए थे जो इस प्रकार हैं।
कटपयादि।
कर्णाटकी संगीत में 72 मेलों के स्वरों को ज्ञात करने की विधि कटपयादि सं कहलाती है, जिसका वर्णन राग लक्षण नामक ग्रन्थ में किया गया है।
कटपयादि में चार अक्षर हैं क ट प य जिसमें क का अर्थ है तक के 9 अक्षर, ट का अर्थ है ट से घ तक के 9 अक्षर, प का अर्थ प से मत के 5 अक्षर और य का अर्थ य से ह तक के 8 अक्षर हैं। इन चार वर्गों के पहले-पहले अक्षरों को लेकर कटपयादि संज्ञा शब्द बना है।
प्रत्येक मेल के आरम्भिक दो अक्षरों से मेल की संख्या ज्ञात की जाती है, जैसे- मायामालवगौड़ के आरम्भ में म और य है, प से गिनने पर म5 जिसे इकाई में लगायेंगे, य से गिनने पर य = 1 जिसे दहाई में लगायेंगे क्योंकि “अंकानाम् वामतो गतिः कही गयी है, अतः मायामालवगौड़ की मेल संख्या 15 हुई। इसी प्रकार मेचकल्याणी की संख्या 65, हनुमत्तोड़ी की 8, और कनकोंगी की एक मेल क्रम संख्या है।
स्वर ज्ञात करने के लिये 72 मेल बनाने की विधि संक्षेप में दी जा रही है कर्णाटकी संगीत में 12 स्वरों के 16 नाम होने के कारण 6-6 अर्द्ध मेल बनते हैं जो इस प्रकार हैं।
पूर्वाग के प्रथम मेल के साथ उत्तरांग के छहों अर्थ मेलों को बारी-बारी जोड़ने से 6 मेल बनेंगे। इसी प्रकार पूर्वाग के दूसरे अर्थ मेल के साथ उत्तरांग के छहों अर्थ मेल जोड़ने से भी 6 और मेल बनेंगे अतः सभी पूर्वाग अर्द्धमेलों से 16X6=36 मेल बनेंगे। इन 36 मलों में शुद्ध मध्यम के स्थान पर तीव्र मध्यम का प्रयोग 7 करने से 36 और मेल प्राप्त होंगे जिनकी क्रम संख्या 37 से 72 तक की है।
शुभपन्तुवराली की मेल संख्या (श = 5 भ = 4 ) 45 है इसमें से 36 घटाने पर शेष 9 बचा इसे 6 से भाग देने पर ज्ञात हुआ कि इसका उत्तर दूसरे वर्ग सा रे ग म में है 9 में से 6 घटाने पर शेष तीन बचा, जो कि उत्तरांग के तीसरे क्रम प ध नि सां का है इस प्रकार कोमल एवं ( 45 में से 36 घटाने के कारण) म तीव्र शुभपंतुवराली के स्वर हुए, जो कि हिन्दुस्तानी तोड़ी के समान हैं।
इस प्रकार 72 मेल कर्ताओं के प्रारम्भिक दो अक्षरों से मेलकर्ता की संख्या के आधार पर स्वर ज्ञात किये जाते हैं। 36 से अधिक संख्या होने पर तीव्र म के मेल होते हैं। इसलिए 36 संख्या घटाकर उसके स्वर ज्ञात किये जायेंगे।
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