Pandit Vishnu Digambar Paluskar Biography




Pandit Vishnu Digambar Paluskar was born in the princely state of Kurundwad, Maharashtra on August 14, 1872, on the day of Shravan Purnima. His father was Mr. Digambar Gopal and mother was Mrs. Ganga Devi. Father was a good performer. At the tender age of 12, his eyes lit up due to which his education could not go forward, his father sent him to Balakrishna Buichalkaranjikar in Miraj to learn music.Pandit ji received music education from Bua Ji for nine years. It was during his education that he realized the pitiable condition of the artists. At that time, the artists do not get much respect in the society. In 1901, he established 'Gandharva College' in Lahore, after this in 1906 he established the second branch of Gandharva College in Mumbai. Opened.He taught about 100 disciples, of which Pt Omkaranath Thakur, Pt Vinayak Rao Patwardhan, Pt Narayan Rao Vyas, Vaman Rao Thakur, Vodas ji are prominent. Vishnu Digambar Paluskar ji was originally a master of the musical style of the Gwalior Gharana. The credit of popularizing the Gwalior Gharana in India goes to Paluskar. He created the new vocal format system, which is famous as 'Vishnu Digambar Swarlipi'. 50 books of music were also published by Pt. Vishnu Digambar Paluskar.These include Sangeet Bal Bodh, Sangeet Bal Prakash, 'Raag Pravesh' etc. You also edited the 'Sangeetamrit Pravah' monthly magazine. Panditji continued in the service of music for life and became a resident of Miraj Nagar, Maharashtra on 21 August 1931. Pt. Vishnu Digambar Paluskar, the bright constellation of Indian music, will always be unforgettable in the music world.





पंडित विष्णु दिगम्बर पलुस्कर का जन्म महाराष्ट्र के कुरुंदवाड रियासत में १८ अगस्त सन् १८७२ को श्रावण पूर्णिमा के दिन हुआ था। इनके पिता श्री दिगम्बर गोपाल थे और माता श्रीमती गंगा देवी थी। पिता जी एक अच्छे कीर्तनकार थे। १२ वर्ष की अल्पायु में इनकी आँखों की ज्योति चली गई जिससे इनकी शिक्षा आगे न चल सकी, इनके पिता ने इन्हें संगीत सीखने के लिए मिरज में बालकृष्ण बुआइचलकरंजीकर के पास भेज दिया। पंडित जी ने नौ वर्षों तक बुआ जी से संगीत की शिक्षा प्राप्त की। शिक्षा काल में ही उन्हें कलाकारों की दयनीय स्थिति का आभास हो गया था उस समय समाज में कलाकारों को ज्यादा मान सम्मान नहीं मिलता जी ने १९०१ में लाहौर में 'गान्धर्व महाविद्यालय की स्थापना की, इसके पश्चात् १९०८ में इन्होंने मुम्बई में गान्धर्व महाविद्यालय की दूसरी शाखा खोली। इन्हाने लगभग १०० शिष्यों की शिक्षा दी जिसमें पं. ओंकारनाथ ठाकुर, पं. विनायक राव पटवर्धन, पं. नारायण राव व्यास, वामन राव ठाकुर, वोडस जी का नाम प्रमुख है। विष्णु दिगंबर पलुस्कर जी मूलत: ग्वालियर घराने के संगीत शैली के निष्णात गायक थे। भारतवर्ष में ग्वालियर घराने को लोकप्रिय कराने का श्रेय पलुस्कर जी को जाता है। आपने नवीन स्वरलिपि पद्धति का निर्माण किया जो विष्णु दिगम्बर स्वरलिपि' के नाम से प्रसिद्ध है। पं. विष्णु दिगम्बर पलुस्कर द्वारा संगीत की ५० पुस्तकें भी प्रकाशित की गयीं। जिनमें संगीत बाल बोध, संगीत बाल प्रकाश, 'राग प्रवेश आदि है। आपने 'संगीतामृत प्रवाह' मासिक पत्रिका का भी संपादन किया। पंडित जी जीवन पर्यन्त संगीत की सेवा में लगे रहे एवं २१ अगस्त १९३१ को महाराष्ट्र के मिरज नगर में व परलोकवासी हो गए। भारतीय संगीत के उज्जवल नक्षत्र पं. विष्णु दिगम्बर पलुस्कर संगीत जगत में सदैव अविस्मरणीय रहेंगे।  


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