पंडित श्रीनिवास की जीवनी (Pandit Srinivas Biography)
in a treatise called 'Sangeet Parijat' and extracted the length of each chord, but His description was ambiguous at many places. Srinivas confirmed Ahobal's opinion and clarified his ambiguous sites in this short book. So whenever it comes to the establishment of vowels on the strings of the veena, Srinivas's name comes up. is. Before Shriniwas and Ahobal, the distance of any two Shrutis was estimated by Shruti, but due to the true efforts of Srinivas, the length of the scientific base was considered. When this book was composed, it is unknown, but looking at the book it is clear that it was composed after 'Sangeet Parijat'. It has eight chapters.Isha-vandana in the first chapter, sruti-vivechan in the second, description of pure, distorted and conversational tones in the third, gram-murti in the fourth chapter, gumak in the fifth, melas in the sixth, description of 101 ragas in the seventh and shruti in the eighth chapter. Is the decision. More information about Srinivas is not received. He is believed to be born around Narpatipur. He was so fond of music books that he used to steal and collect them.In this way, he had made a good collection of music books, but unfortunately there was a fire and all his literature was destroyed, he was very sad, but took it as an atonement of theft and was satisfied. "राग तत्व विबोध के लेखक श्रीनिवास हैं जिसे उसने सत्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में लिखा । सन् 1650 में पंडित अहोबल ने संगीत परिजात' नामक ग्रन्थ में वीणा के 36 खुले तार पर बारहो स्वरों की स्थापना की और प्रत्येक स्वर के तार की लम्बाई निकाली, किन्तु उनका वर्णन कई स्थलों पर अस्पष्ट था। श्रीनिवास ने अहोबल के मत की पुष्टि की और अपने इस छोटे से ग्रन्थ में उनके अस्पष्ट स्थलों को स्पष्ट किया। इसलिये जब कभी वीणा के तार पर स्वरों की स्थापना की बात आती है तो श्रीनिवास का नाम सामने आता है। श्रीनिवास और अहोबल के पूर्व किन्हीं भी दो श्रुतियों की दूरी श्रुतियों द्वारा आंकी जाती थी, किन्तु श्रीनिवास के सत्य प्रयत्नों से वैज्ञानिक आधार-तार की लम्बाई मानी जाने लगी। इस ग्रंथ की रचना कब हुई, यह अज्ञात है, किन्तु पुस्तक को देखने से यह स्पष्ट है कि इसकी रचना 'संगीत पारिजात' के बाद हुई। इसके आठ अध्याय हैं। पहले अध्याय में ईश-वंदना, दूसरे में श्रुति-विवेचन, तीसरे में शुद्ध, विकृत और संवादी स्वरों का वर्णन, चौथे अध्याय में ग्राम-मूर्छना, पाचवें में गमक, छठवें में मेल, सातवें में 101 रागों का वर्णन और आठवें अध्याय में श्रुति निर्णय है। श्रीनिवास के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त नहीं होती है। उनका जन्म नरपतिपुर के आस-पास माना जाता है। उन्हें संगीत की पुस्तकों से इतना लगाव था कि उन्हें चुराकर भी संग्रह करता था। इस प्रकार उन्होंने संगीत-पुस्तकों का एक अच्छा संग्रह बना लिया था, किन्तु दुर्भाग्यवश उसमें आग लग गई और उनका सम्पूर्ण साहित्य नष्ट हो गया इससे वे अत्यन्त दुःखी हुये, किन्तु उसे चोरी का प्रायश्चित समझ कर सन्तोष कर लिया।
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Very interesting
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