Growth and emergence The main purpose of music is pigmentation, so to increase the melody of raga, relaxation of raga rules has also been accepted. Sometimes, by hiding the nature of the original raga a little or by bringing the shadow of its common raga, the melody of the raga increases, which is called tirobhava in music. If you come to the main raga after tirobhava, it is called avirbhava.
The Tirobhava Kriya should be shown only when the form of the original raga is properly established and its use enhances the melody of the raga. This action should be performed for a short time so that no harm is done to the original raga. Tirobhava is done in two ways. 1- By showing the shadow of the equivalent raga, 2- By changing the base vowel from unconsciousness.
Example- (1) As if the original raga Bhairavi is being sung, it will be as follows -
सा ध_, नि_सा, सा रे _ ग_ म प ध_ प ,म ग_ रे_ सा, ध_ नि_ सा रे_ सा।
Tirobhava - नि_ सा, ग_ म प, म प ग_ म, नि_ सा ग_ सा ग_ म ग_ म प भीमपलासी
आर्विभाव- ग_ म प ध_ प म प ग_ म ग_ रे_ सा (भैरवी)
Example (2) When in a raga, other than conspiracy, if any other is considered as base, then the second raga will appear instead of the original raga.
For example, if we consider the medium of the raga Lalit, the todi raga will be visible.
The raga todi - सा, रे_ ग_ रे_ सा, रे_ ग_ म| ध_, ध_, म| ग रे_ ग_ रे_ सा
Raag lalit- म|, म ध_ म|म, म| ध_ नि सां, सां, नि ध_ म| ध_ म| म
|इसका मतलब म तीव्र स्वर
_इसका मतलब कोमल स्वर
हिन्दी के लिये
तिरोभाव और आविर्भाव
संगीत का मुख्य उचेश्य रंजकता है अतः राग की मधुरता में वृद्धि के लिये राग के नियमों में शिथिलता भी स्वीकार की गई है।
कभी-कभी मूल राग के स्वरुप को थोड़ा छिपा देने से अथवा उसके समप्रकृति राग की छाया लाने से राग की मधुरता बढ जती है जिसे संगीत में तिरोभाव कहते हैं। तिरोभाव के बाद पुनः मुख्य राग में आते हैं तो उसे आविर्भाव कहते हैं।
तिरोभाव क्रिया तभी दिखाई जानी चाहिए जब मूल राग का स्वरुप ठीक प्रकार से स्थापित हो जाए और इसके प्रयोग से राग की मधुरता में वृध्दि हो। यह क्रिया अल्प समय के लिये दिखाई जानी चाहिए।जिससे मूल राग को कोई क्षति न पहूँचे। तिरोभाव दो प्रकार से किया जता है।
1- सम-प्रकृती राग की छाया दिखाकर,
2- मूर्च्छना-भेद से आधार स्वर परिवर्तित करके।
उदाहरण- (१) जैसे यदि मूल राग भैरवी गाया बजाया जा रहा हो तो निम्न प्रकार से होगा- सा ध_, नि_सा, सा रे _ ग_ म प ध_ प ,म ग_ रे_ सा, ध_ नि_ सा रे_ सा।
तिरोभाव - नि_ सा, ग_ म प, म प ग_ म, नि_ सा ग_ सा ग_ म ग_ म प (भीमपलासी)
आर्विभाव- ग_ म प ध_ प म प ग_ म ग_ रे_ सा (भैरवी)
उदाहरण-(२) जब किसी राग में षडज के अतिरिक्त किसी अन्य को आधार अर्थात् षड्ज मान लिया जाये तो मूल राग के स्थान पर दूसरा राग दिखाई देने लगेगा। जैसे राग ललित के मध्यम को सा मान लें तो तोड़ी राग दिखाई देने लगेगा।
राग तोड़ी- सा, रे_ ग_ रे_ सा, रे_ ग_ म| ध_, ध_, म| ग रे_ ग_ रे_ सा
राग ललित-म|, म ध_ म|म, म| ध_ नि सां, सां, नि ध_ म| ध_ म| म
|इसका मतलब म तीव्र स्वर
_इसका मतलब कोमल स्वर
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