Classical music ke Vaadyo ke parichya

Classcal music ke Vaadyo ke parichya. वाद्यों के परिचय।

तानपूरा (तम्बूरा)

Vaadyo ke parichya- साधारणतया इस वाद्य को तानपूरा के नाम से पुकारते हैं। उत्तर भारतीय संगीत में इसने महत्वपूर्ण स्थान ग्रहण कर लिया है। कारण यह है कि इसका स्वर बहुत ही मधुर तथा अनुकूल वातावरण की सृष्टि में सहायक होता है। तानपूरे की झंकार सुनते ही गायक की हृदय-तन्त्री भी झंकरित हो उठती है, अत: इसका उपयोग गायन अथवा वादन के साथ स्वर देने में होता है। अपरोक्ष रूप में तानपूरे से सातो स्वरों की उत्पत्ति होती है, जिन्हें हम सहायक नाद कहते हैं। सहायक नाद पर आगे विचार करेंगे। यह अवश्य है कि प्रत्येक तानपूरे से हर समय हर सहायक नाद नहीं उत्पन्न होता और अगर उत्पन्न भी होता है तो प्रत्येक व्यक्ति सुनकर समझ भी नहीं सकता।

तानपूरा के तार और उन्हें मिलाने की विधि- तानपूरा अथवा तानपूरे में 4 तार होते हैं। प्रथम तार को मंद्र सप्तक के पंचम अथवा जिन रागों में पंचम स्वर प्रयोग नहीं होता है, शुद्ध मध्यम से मिलाते हैं! कुछ रागों में, जिनमें न तो पंचम और न शुद्ध मध्यम ही प्रयोग होते हैं-जैसे पूरिया, मारवा में तो इसे मंद्र नि से मिलाते हैं। यह तार पीतल का होता है। तानपूरे के दूसरे और तीसरे तार सदैव मध्य सप्तक के षडज से मिलाये जाते हैं। ये दोनों तार लोहे के होते हैं। चौथा अथवा अंतिम तार भी पीतल का होता है। इसे मंद्र षडज से मिलाया जाता है। यह अन्य तारों की तुलना में मोटा होता है। स्त्रियों के तानपूरे का प्रथम तार भी लोहे का होता है और अन्य तार, पुरूषों के तानपूरे के समान, दूसरा और तीसरा लोहे का तथा चौधा पीतल का होता हैं। अधिक उतार-चढ़ाव के लिये तार को खूंटी से मिलाते हैं और सूक्ष्म अन्तर के लिये मनका ऊपर-नीचे करते हैं।


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