Murchana in Music in hindi














मूर्छना क्रमयुक्ताः स्वराः सप्त मूर्छनास्त्वभिसंहिता।
नाट्यशास्त्र


भरत के अनुसार क्रम से सप्त स्वरों का आरोह अवरोह करने से गुना की रचना होती है, लेकिन प्रश्न यह उठता है कि किन सात स्वरों का आरोहावरोह किया जाय। उत्तर यह है कि ग्राम के ही स्वरों का आरोह अवरोह करने से मूर्छनायें बनती है। ग्राम चाहे पउज ग्राम हो अथवा मध्यम ग्राम दोनों से समान रूप से मीणाओं की रचना होती है। संगीत रत्नाकर में कहा गया है, ग्राम स्वर-समूह स्थातभूच्च्छनादेः समाश्रयः अर्थात् ग्राम के ही स्वरों पर मूर्छना आधारित है ग्राम के किसी भी स्वर को स्वरित (आधार) मान कर उसके ही स्वरों पर आरोह-अवरोह करने से मूर्छना की रचना होती है। उदाहरणार्थ षडज ग्राम के रिषभ को आधार मान कर मूर्छना प्रारम्भ करने से गन्धार रिषभ हो जायेगा.

मध्यम गंधार होगा, इत्यादि-इत्यादि। इसी प्रकार ग्राम के शेष स्वरों से ही आरोह-अवरोह करने से मूर्छना की रचना होती है। एक ग्राम में 7 स्वर होते हैं। अतः प्रत्येक ग्राम से 7 मूनाओं की रचना सम्भव है। अतः षडज, गन्धार और मध्यम ग्रामों से कुल 7x3 = 21 मूर्छनायें बनती है। मुना और आधुनिक थाटों की तुलना सर्वप्रथम षडज ग्राम की मूर्छनाओं की तुलना आधुनिक थाट से करेंगे। इस ग्राम के सातों स्वर क्रमशः 4. 3. 2. 4, 3. 2 श्रुतियों की दूरी पर स्थित है। 

(1) पहली मूर्छना षडज से प्रारम्भ होगी। अतः 4थी पर सा, 7वीं पर रे, 9वीं पर ग, 13वीं पर म, 17वीं पर प. 20वीं पर ध और वीं श्रुति पर नि आवेगा। इसमें गंधार और निषाद पिछले स्वर रिषभ और धैवत से क्रमशः दो-दो श्रुति ऊँचे हैं। अतः ये दोनों स्वर कोमल हो जावेंगे और यह मूर्छना आधुनिक काफी थाट के समान होगी। यहाँ पर यह जानना आवश्यक है कि दो श्रुतियों से अर्ध स्वर (सेमी टोन) और 3 अथवा 4 श्रुतियों से पूर्ण स्वर (होल टोन) होता है।

(2) द्वितीय मूर्छना में मन्द्र नि को सा मानकर षडज ग्राम के स्वरों पर क्रमिक आरोह-अवरोह करेंगे। इसलिये सातों स्वर क्रमशः 2, 4, 3, 2, 4, 4 और 3 श्रुतियों के अन्तर पर होंगे। यह आधुनिक बिलावल थाट होगी, क्योंकि इसका कोई भी स्वर कोमल नहीं है। केवल मध्यम की 2 श्रुतियाँ हैं, अतः नियमानुसार म को कोमल होना चाहिये, किन्तु मध्यम कोमल नहीं होता। वास्तव में कोमल म को ही शुद्ध म कहते हैं। 

करेंगे। अतः सातों स्वर क्रमशः 3, 2, 4, 3, 2, 4 और 4 श्रुतियों के अन्तर पर होंगे। इसमें रे कोमल और पंचम स्वर तीव्र मध्यम हो जावेगा, क्योंकि रे और प अपने अपने निकटवर्ती स्वरों से क्रमशः दो श्रुति ऊँचे हैं। रे कोमल होने से 4 श्रुतियों का गन्धार भी शुद्ध न होकर कोमल हो जावेगा, इसी प्रकार ध और नि भी शुद्ध न होकर कोमल हो जावेंगे। तीव्र म से 4 श्रुति ऊँचा स्वर कोमल ध और कोमल ध 4 श्रुति ऊँचा स्वर कोमल नि हो जावेगा। अतः इस मूर्छना में रे, ग,ध और नि स्वर कोमल तथा दोनों मध्यम और पंचम वर्ण होने से यह मूर्छना उत्तर भारतीय किसी भी थाट के समान नहीं होगी। 


(5) पाँचवी मूर्छना मन्द्र के मध्यम से प्रारम्भ होने से सातों स्वर क्रमशः 4, 4, 3, 2, 4. 3 और 2 श्रुत्यांतरों पर होंगे। इसमें केवल निषाद स्वर कोमल होगा क्योंकि पीछे हम बता चुके हैं कि दो श्रुतियों के अन्तर से अर्धस्वर होता है। म और नि की 2-2 श्रुतियाँ हैं। म कोमल नहीं होता, अतः केवल निषाद स्वर कोमल हो जावेगा। यह मूर्छना खमाज थाट के समान होगा। 


(7) सातवीं मूर्छना मन्द्र के रिषभ से प्रारम्भ होगी और उसके स्वर क्रमशः 3, 2, 4, 4, 3, 2 और 4 श्रुतियों के अन्तर पर होंगे। इसमें रे, ग, ध और नि स्वर कोमल होंगे। यद्यपि ग भी 4 श्रुति ऊँचा है किन्तु कोमल रे से। इसलिये ग भी कोमल हो जावेगा। इसी प्रकार ध की 2 श्रुति होने पर कोमल हो जावेगा और धैवत के कोमल हो जाने से नि भी कोमल हो जावेगा। यह मूर्छना भैरवी थाट के समान होगी। ग्राम-तालिका से यह भी स्पष्ट हो जावेगी। अगले पृष्ठ पर ग्राम तालिका दी जा रही है। इसी प्रकार मध्यम ग्राम की मूर्छनायें भी ज्ञात की जा सकती हैं। यहाँ पर केवल षडज ग्राम की मूर्छनाओं पर विचार किया गया है।



Post a Comment

0 Comments