Indian classical music Gharana (part-2) हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत घराना (अध्याय-2)



 
Patiala gharana

This house was run by Alaiya who were called Alibakhsh and Fattu whom were called Fateh Ali. Some people think that the father of these people, elder Mian Kalu Khan, laid the foundation of this house. These two brothers had studied in Jaipur's Gorkhi Bai, Bairamkhan and Tanaras Khan and extended the Patiala Gharana. Till now, this house was represented by the elder Ghulam Ali Khan. The elder Ghulam Ali Khan got education from his uncle Kale Khan. Ali Bakhsh, father of the elder Ghulam Ali Khan and uncle Kale Khan, received education from the elder Kalu Khan. Kale Khan was also educated by Fateh Ali. Munavvar Ali Khan, son of the elder Ghulam Ali Khan, was still representing this house.

Features of Patiala Gharana

(1) Complete restriction of care, but brief thought
(2) Use of figurative, curved and twisted stems,
(3) Preparation of stems and their use.
(4) Punjabi Ang Ki Thumri with skill in singing and
(5) Preparation of the throat.

Alladia Khan's Gharana 

Alladia Khan ran a new gharana with her independent singing style. He received music education from Jahangir Khan. Jahangir Khan was educated by his father Khwaja Ahmad and Khwaja was educated from Manatol Khan. Later Khan Sahab Alladia Khan started living in Maharashtra, his brother Hyder Khan who was a high-profile singer. Late Bhaskar Buva Bakhale earned a good name in the music world. Manji Khan and Bhurji Khan were very good artists of their time. These two were brothers and were sons of Alladia Khan. Manji Khan's full name was Badrudin Khan and Bhuji Khan's full name was Shamshudeen Khan. Nowadays, the representatives of this house were artists - Kesarbai Kerkar, Mobai Kudi Kar and Shankarrao Saranike etc.

Specialty of alladia gharana

(1) Wise and screwy singing,
(2) the characteristic of the speaking organs,
(3) its special way of filling the song,
(4) special inclination towards obsolete ragas,
(5) Singing in a delayed rhythm,
(6) Hard singing.

Kirana Gharana 

 This gharana was founded in the Mughal period. Due to the floods, the musicians of Doni settled Jahangir in a place called Corona in the district Muzaffarnagar in U.P. This house got its name based on that place. Sadiq Ali Khan was a famous beankar there. His son Uttar Pradesh Ali Khan became a good performer and singer. He was also the musician of the Indore court and the Guru of the Maharaja. Ustad Bade was the head of Ali Khan's disciples - Murad Khan Beankar and Nanhe Khan Khan whose disciples were Alibakhsh and Maulabakhsh. Later, Abdul Karim Khan and Abdul Waheed Khan became the main representatives of this family, who took this family forward. Abdul Karim Khan became more popular due to his sweet voice and seductive singing. Abdul Waheed Khan was a close relative of Karim Khan who lived in Miraj and was a representative of this family. Karim Khan had four brothers, Abdul Haq, Abdul Gani, Abdul Majeed and himself. Late Rambhau Kundgolkar (Sawai Gandharva) and late Suresh Babu Mane were singers of the same tradition, who received their education from Abdul Karim Khan. Nowadays, the main representative artists of this Gharana are Late Hirabai Badodekar, Pt. Bhimsen Joshi, Saraswati Bai Rane, Basavaraj Rajguru, Gangubai Hangal, Late Rajdab Ali Khan, Late Ustad Amir Khan, Deaf Bua, Mrs. Roshan Ara Begum of Pakistan etc. Bhimsen Joshi, Gangubai Hangal and Basavaraj Rajguru received music education from Sawai Gandharva.

Kirana Gharana pecialty

(1) Alap chord vocal,
(2) emotional tone
(3) belated edge of the vowel,
(4) stringed singing,
(5) Delayed rhythmic singing..

Thank you

पटियाला घराना

इस घराने को अलैया जिन्हें अलीबख्श कहते थे तथा फत्तू जिन्हें फतेह अली कहते थे, इन दो भाइयों ने चलाया कुछ लोगों का विचार है कि इन लोगों के पिता बड़े मियाँ कालू खाँ ने इस घराने की नींव डाली। इन दो भाइयों ने जयपुर की गोरखी बाई, बैरामखाँ तथा तानरस खां से शिक्षा प्राप्त की थी और पटियाला घराने को बढ़ाया। अभी तक इस घराने का प्रतिनिधित्व बड़े गुलाम अली खाँ कर रहे थे। बड़े गुलाम अली खाँ को अपने चाचा काले खां से शिक्षा मिली। बड़े गुलाम अली खाँ के पिता अली बख्श और चाचा काले खाँ को बड़े कालू खाँ से शिक्षा प्राप्त हुई। काले खाँ को फतेह अली द्वारा भी शिक्षा मिली थी। बड़े गुलाम अली खां के पुत्र मुनव्वर अली खान अभी तक इस घराने का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। 

पटियाला घराने की विशेषतायें 

(1) ख्याल की का पूर्ण बन्दिश किन्तु संक्षिप्त ख्याल 
(2) अलंकारिक, वक्र तथा फिरत तानों का प्रयोग, 
(3) तानों की तैयारी और उनका अधिक प्रयोग
(4) ख्याल के साथ पंजाब अंग की ठुमरी गाने में निपुणता और 
(5) गले की तैयारी।

अल्लादिया खाँ का घराना 

अल्लादिया खाँ ने अपनी स्वतंत्र गायन-शैली द्वारा एक नया घराना चलाया। उन्होंने जहाँगीर खाँ से संगीत-शिक्षा प्राप्त की थी। जहाँगीर खाँ ने अपने पिता ख्वाजा अहमद से और ख्वाजा ने मानतोल खाँ से शिक्षा ग्रहण की थी। बाद में खाँ साहब अल्लादिया खाँ महाराष्ट्र में रहने लगे, उनके भाई हैदर खाँ थे जो एक उच्चकोटि के गायक थे। स्व० भास्कर बुवा बखले ने संगीत-जगत में अच्छा नाम कमाया। मंजी खाँ और भुर्जी खाँ अपने समय के बड़े अच्छे कलाकार थे। ये दोनों भाई थे और अल्लादिया खाँ के पुत्र थे। मंजी खाँ का पूरा नाम बदरूदीन खाँ और भुजी खाँ का पूरा नाम शमशुदीन खाँ था। आजकल इस घराने के प्रतिनिधि कलाकार थे- केसरबाई केरकर, मोबाई कुड़ी कर तथा शंकरराव सरनाइक आदि। 

अल्लादिया घराने की विशेषता 

(1) बुद्धि प्रधान और पेंचदार गायकी, 
(2) बोल अंगों की विशेषता, 
(3) गीत को भरने का अपना विशेष ढंग, 
(4) अप्रचलित रागों की ओर विशेष झुकाव, 
(5) विलम्बित लय में गायन, 
(6) कठिन गायकी।

किराना घराना 

 इस घराने की बुनियाद मुगल काल में हुई थी। बाढ़ के कारण दोन्ही के संगीतज्ञों को जहाँगीर ने यू0 पी0 में ही जिला मुजफ्फरनगर के कोरोना नामक स्थान में बसा दिया। इस घराने का नाम उस स्थान के आधार पर पड़ा। सादिक अली खाँ वहाँ के एक प्रसिद्ध बीनकार थे। उनके पुत्र उ0 बन्दे अली खाँ एक अच्छे बीनकार और गायक हुये। वे इन्दौर दरबार के संगीतज्ञ और महाराजा के गुरू भी थे। उस्ताद बंदे अली खाँ के शिष्यों केप्रमुख थे- मुराद खाँ बीनकार और नन्हें खाँ रूप दिया जिनके शिष्य थे अलीबख्श और मौलाबख्श। आगे चलकर अब्दुल करीम खाँ और अब्दुल वहीद खाँ इस घराने के मुख्य प्रतिनिधि हुये, जिन्होंने इस घराने को बहुत आगे बढ़ाया। अब्दुल करीम खाँ अपनी मधुर आवाज तथा मोहक गायकी के कारण अधिक लोकप्रिय हुए। अब्दुल वहीद खाँ करीम खाँ के निकट सम्बन्धी थे जो मिरज में रहते थे तथा इस घराने के प्रतिनिधि थे। करीम खाँ चार भाई थे अब्दुल हक, अब्दुल गनी, अब्दुल मजीद और स्वयं। स्वर्गीय रामभाऊ कुंदगोळकर (सवाई गन्धर्व) तथा स्व० सुरेश बाबू माने इसी परम्परा के गायक थे, जिन्होंने अब्दुल करीम खाँ से शिक्षा प्राप्त की थी। आजकल इस घराने के प्रमुख प्रतिनिधि कलाकार हैं स्व0 हीराबाई बडोदेकर, पं0 भीमसेन जोशी, सरस्वती बाई राने, बसवराज राजगुरु, गंगूबाई हंगल, स्व० रज्जब अली खां, स्व० उस्ताद अमीर खाँ, बहरे बुआ, पाकिस्तान की श्रीमती रोशन आरा बेगम इत्यादि। सवाई गन्धर्व से भीमसेन जोशी, गंगूबाई हंगल तथा बसवराज राजगुरु ने संगीत-शिक्षा ग्रहण की। 

किराना घराने की विशेषता 

(1) आलाप प्रधान गायकी, 
(2) स्वर लगाने की भावपूर्ण ढंग, 
(3) स्वर की विलम्बित बढ़त, 
(4) चैनदार गायकी, 
(5) विलम्बित लय प्रधान गायकी।

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