AIR's contribution to the development of indian classical music.
भारत में रेडियो का आगमन अथवा प्रचार-प्रसार सन् 1936 ई. के लगभग हुआ, परन्तु संगीत के कार्यक्रमों के प्रसारण की दृष्टि से सन् 1950 ई. के बाद ही हुआ। सन् 1916 ई. में विश्व का प्रथम रेडियो समाचार संयुक्त राज्य अमेरिका के चुनाव के सम्बन्ध में प्रसारित किया गया। 23 जुलाई सन् 1927 ई. में बम्बई और 26 अगस्त सन् 1927 ई. कलकत्ता आकाशवाणी केन्द्रों की स्थापना की गई। प्रो. शुचिस्मिता के अनुसार बम्बई केन्द्र की विधिवत स्थापना के बाद 23 जुलाई सन् 1927 ई. ही भारत में रेडियो के प्रसारण की प्रथम तिथि मानी जा सकती है।' रेडियो के आगमन से भारतीय संगीत के विकास में नई क्रान्ति आई। मनोरंजन का यह सबसे सस्ता व श्रेष्ठ माध्यम माना गया। जनसाधारण में संगीत आकाशवाणी की सहायता से इतना सुलभ हो गया है कि इसके प्रसारण को सुनकर ही बहुत कुछ ज्ञान के रूप में ग्रहण किया जा सकता है। इसके द्वारा बड़े-बड़े कलाकारों का गायन-वादन घर पे ही सुना जा सकता है। शास्त्रीय व लोक संगीत को सर्वप्रिय बनाने के लिए रेडियो ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आज कई दैनिक, साप्ताहिक, मासिक व वार्षिक संगीत के कार्यक्रम आकाशवाणी द्वारा प्रस्तुत किए जाते हैं। इसके द्वारा महान कलाकारों की कला आज आसानी से जनसाधारण को प्राप्त है। आकाशवाणी के संग्रहालयों में पुराने उस्तादों के गायन-वादन की महत्वपूर्ण एवं अथाह साम्रगी सुरक्षित है तथा आकाशवाणी समय-समय पर इनका प्रसारण भी करती रहती है। शास्त्रीय संगीत का प्रचार सभी शैलियों का प्रसारण, नए कलाकारों को प्रकाश में लाना, विभिन्न संगीत सम्मेलनों तथा राष्ट्रीय कार्यक्रमों आदि का प्रसारण आकाशवाणी द्वारा किया जाता है।
अखिल भारतीय आकाशवाणी ने सन् 1952 ई. से राष्ट्रीय संगीत का महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम प्रसारित करना आरम्भ किया। इसके फलस्वरूप आकाशवाणी के रंगमंचर कर्नाटकी तथा उत्तर भारतीय संगीत के प्रायः समस्त सर्वश्रेष्ठ कलाकारों ने अपनी कला का प्रदर्शन किया। इससे संगीतज्ञों में एक नवीन प्रेरणा, एक नवीन उत्साह और एक नवीन स्फूर्ति का उदय हुआ।। भारतीय संगीत को सर्वसाधारण के लिए आकर्षक बनाने की दिशा में अखिल भारतीय आकाशवाणी ने एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया। उसने 'सुगम संगीत' का निर्माण किया, जो चित्रपट संगीत की लोकप्रियता से स्पर्धा करते हुए भी उसकी बुराइयों से अछूता रहता है। सुगम संगीत बड़े उत्साह से जनता ने अपनाया। यह संगीत भी चित्रपट संगीत के समान ही जनप्रिय हुआ। इतिहासकार भगवतशरण शर्मा के अनुसार:- “आकाशवाणी से शास्त्रीय संगीत की विभिन्न धाराएं एक नियोजित क्रम से प्रसारित होती रहती हैं। कर्नाटक और हिन्दुस्तानी संगीत स्कूलों में रागों से सम्बन्धित संगीत के समारोह, संगीत के राष्ट्रीय कार्यक्रम तथा रेडियो संगीत सम्मेलन इस दिशा में किए गए आकाशवाणी के विशिष्ट प्रयास हैं। त्यागराज तथा तानसेन जैसे संगीतकारों, विष्णु दिगम्बर जैसे गायकों तथा भातखण्डे जैसे संगीत शास्त्रियों की स्मृतियों में विभिन्न उत्सवों का आयोजन आकाशवाणी के द्वारा समय-समय पर किया जाता है। हिन्दुस्तानी व कर्नाटक दोनों ही संगीत स्कूलों के प्रमुख गायकों तथा वादकों के कार्यक्रम प्रस्तुत करते र का आकाशवाणी का कार्य भी शास्त्रीय संगीत की सुरक्षा एवं प्रचार-प्रसार के लिए एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है।
आकाशवाणी न केवल शास्त्रीय संगीत बल्कि अपने सरल अथवा सुगम संगीत द्वारा श्रोताओं की रुचि के अनुसार संगीत के कार्यक्रमों का प्रसारण करती है। आकाशवाणी पर अनेकों कार्यक्रम ऐसे होते हैं, जो साधारण जन और आगे बढ़ते बच्चों को उत्साहित करके अपनी ओर आकर्षित करते हैं। “भारत की वाद्य वृन्द परम्परा, जो विदेशी शासकों के समय में मृतप्राय हो चुकी थी, अब आकाशवाणी के केन्द्रों द्वारा पुनः उत्थान की ओर अग्रसर हो रही है। शास्त्रीय कलाकारों के लिए आकाशवाणी चयन बोर्ड की स्थापना जुलाई सन् 1952 ई.में हुई। कलाकारों का योग्यता के आधार पर विभाजन किया गया और योग्यता के अनुसार ही पारिश्रमिक निर्धारित किया गया। शास्त्रीय तथा लोक संगीत, सुगम संगीत की उन्नति और विकास के लिए ही आकाशवाणी पर संगीत के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। आधुनिक काल में गृह प्रसारण सेवा में मुख्य भाषाओं और 142 जन-जातियों और दूसरी जातियों व बोलियों के कार्यक्रम प्रस्तुत किए जा रहे हैं। संक्षेप में जहाँ आकाशवाणी एक ओर ज्ञान की गंगा को प्रवाहित कर रही है, वहीं संगीत आदि कलाओं और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से प्रत्येक वर्ग के लोग रस गंगा में भी प्रतिदिन एवं प्रतिक्षण ही स्नान कर रहे हैं। अतः संगीत के प्रचार-प्रसार में आकाशवाणी का स्थान अद्वितीय है।
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